सुबोध सिंह APP न्यूज क्राईम रिपोर्टर, बांका बिहार
अमरपुर विधानसभा चुनाव की राजनीतिक जमीन पर कौन फहराएगा विजय का झंडा
बांका जिले के अमरपुर विधानसभा सीट पर आगामी विधान सभा चुनाव को लेकर राजनीतिक सियासी सरगर्मी तेज हो गई है। लंबे समय से इस सीट पर दबदबा बनाए हुए जेडीयू मंत्री जयंत राज कुशवाहा को इस बार जीत दर्ज करने के लिए कई चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।
राजनीतिक गलियारो में जो चर्चा है कि यदि राष्ट्रीय जनता दल से शिक्षाविद और समाजसेवी संजय चौहान को उम्मीदवार बनाया जाता है, तो यहां का पूरा राजनीतिक परिदृश्य ही बदल जाएगा। संजय चौहान लंबे समय से शिक्षा और सामाजिक कार्यों से जुड़े रहे हैं। एक शिक्षक के रूप में उनकी साफ-सुथरी छवि और आम जनता के बीच गहरी पकड़ ने उन्हें विशेष पहचान दिलाई है। यही वजह है कि राजपूत समाज, जो अब तक बड़ी संख्या में जदयू के साथ खड़ा रहा, इस बार राजद की ओर झुक सकता है।
जानकारों का मानना है कि राजपूत समाज का झुकाव निर्णायक साबित हो सकता है। राजद को पहले से ही मुस्लिम और यादव समाज का परंपरागत समर्थन प्राप्त है। दूसरी ओर अगर जनसुराज की पार्टी अमरपुर विधानसभा सीट में कुशवाहा वर्ग के सुजाता वैध को टिकट देकर उम्मीदवार बनते हैं तो वह भी जाति वर्ग की समीकरण को मजबूत कर एनडीए को ही नुकसान पहुंचाने का काम करेंगे। यदि इसमें राजपूत समाज का बड़ा वर्ग जुड़ गया, तो अमरपुर में एम वाय के साथ साथ राजपूत गठजोड़ ऐसा वोट समीकरण बनाएगा। जिसे तोड़ पाना जदयू के लिए बेहद मुश्किल होगा।
यही नहीं अमरपुर विस क्षेत्र में राजद नेता संजय चौहान लगातार थाने–ब्लॉक–ठेकेदार की दलाली, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और खराब प्रशासन से त्रस्त सिस्टम को लेकर विधान सभा चुनाव में मुद्दा बनाकर जनता के बीच आवाज उठा रहे है। राजनीतिक विशेषज्ञों का अनुमान है कि यदि समीकरण इसी तरह बनता है तो राजद को कुल वोट का लगभग 55% समर्थन मिल सकता है, जबकि जदयू का आधार वोट 35–40% तक सिमट सकता है। जनता के बीच यह चर्चा भी है कि अब अमरपुर बदलाव चाहता है और इस बदलाव की अगुवाई स्वच्छ छवि के उम्मीदवार ही कर सकते हैं।
हालांकि एनडीए के कार्यकर्ताओं का कहना से है कि जदयू विधायक जयंत राज विकास के बुते हर जाति वर्ग में पकड़ बनाए हुए हैं। उन्हें राजनीतिक की नजरिए से कम आंकना भूल होगी। वर्तमान में कार्यकर्ता उनकी जीत पक्की बता रहे है। अब देखने वाली बात यह होगी कि अमरपुर विधानसभा चुनाव में राजनीतिक मैदान में कौन बाजी मारते हैं और कौन पिछड़ते हैं। फिलहाल विभिन्न पार्टी दलों से चुनाव लड़ने वाले पहलवान अभी टिकट की चाह में उम्मीद लगाए बैठे हैं और टिकट लेकर चुनावी मैदान में आना भी किसी सेमीफाइनल जीत से कम नहीं है।
अक्सर आपने देखा होगा की रेस में अक्सर तेज दौड़ने वाला पहलवान भी मंजिल तक नजदीक आते ही पिछड़ जाते हैं और पीछे चल रहे पहलवान मंजिल के करीब आगे निकल जाते हैं।