शंभूगंज प्रखंड क्षेत्र के भरतशिला गांव में चार सौ वर्ष पूर्व मां काली मंदिर का स्थापना हुई है। उस वक्त राजा खंतौड़ी का राज चलता था। भरतशिला गांव के 92 वर्षीय बुजुर्ग हृदय नारायण भगत एवं 90 वर्षीय प्रीत लाल यादव ने बताया कि मेरे पुर्वज भी नहीं बता पाए कि काली माता मंदिर का स्थापना कब किया गया है। दोनों बुजुर्गों द्वारा बताया गया कि जब देश में 1635 में भुकंप हुआ था और 1942 में देश आजाद हुआ उसके पूर्व ही राजा खंतौड़ी का राज चलता था। और उनके द्वारा ही काली माता मंदिर का स्थापना हुई है।
अंग्रेज भी मां काली की शक्ति के थे पुजारी
उन्होंने बताया कि जब देश में अंग्रेजों का राज था और भरतशिला में उनका कचहरी था तो उन्होंने अपने कर्मचारियों के लिए यहां हाट बाजार लगाया गया और खुद अंग्रेज भी मां काली की शक्ति के आगे नतमस्तक हो जाते थे। भरतशिला गांव में स्थापित काली माता का मंदिर पूर्व में एक फूस के झोपड़ी में था। जहां 60 वर्ष पूर्व ही स्थानीय लोगों के सहयोग से काली माता मंदिर का भव्य रूप दिया गया है। कहते है यहां की काली माता का महिमा अपरंपार है। और जो भी श्रद्धालु काली माता का आस्था व निष्ठा के साथ सच्चे दिल से पुजा अर्चना कर अपनी मंनत मानते हैं माता उनके मंनत को पुरा करती हैं। तभी तो पुरा भरतशिला गांव के ग्रामीण मां काली को अपने गांव का कुल देवी मानते है। जिनके कृपा से आज स्थानीय लोग सिक्किम सहित अन्य राज्यों में अपना - अपना कारोबार सहित अच्छे-अच्छे पदों पर रहकर यहां का नाम रोशन कर रहे हैं। बताया कि काली माता का पूजा अर्चना स्थानीय लोगों के सहयोग से किया जाता है। प्रत्येक वर्ष सभी के सहमति से काली माता का पूजा अर्चना पर सहयोग समिति बनाया जाता हैं।
काली मंदिर परिसर में होता दो दिवसीय मेला का आयोजन
बताया कि यहां तीन दिवसीय मेला का आयोजन किया जाता है। और जागरण का कार्यक्रम प्रशासन के सहमति से किया जाता हैं। यहां पाठा बलि का परंपरा है और काली माता के पूजा के बाद भी श्रद्धालुओं द्वारा पाठा बलि दी जाती हैं। काली माता के पूजा के समय मेला में शांति व्यवस्था के लिए स्थानीय युवाओं द्वारा एवं प्रशासन के सहयोग से किया जाता हैं। काली माता के पूजा अर्चना करने अगल बगल गांव के हजारों से ज्यादा श्रद्धालुओं का जमावाड़ा लगता है।