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बांका : कर्पूरी के अनुयायी पूर्व विस प्रत्याशी धीरेन्द्र ने जनता की राय पर बदलता रहा दल पर दबने नहीं दिया जनता की आवाज

कुमार सुबोध सिंह, डेस्क रिपोर्ट बांका (बिहार),

शंभूगंज के बरौथा गांव के सामाजिक नेता 91 वर्षीय धीरेन्द्र यादव ने वर्तमान राजनीतिक पर दुख व्यक्त करते हुए रविवार को कहा कि अब चुनाव इंसानों का नहीं रहा। अब चुनाव में सिर्फ धन व बल का खेल होता है। जिसके कारण सही लोग न तो विधान सभा और ना ही सांसद पहुंच पाते हैं। वर्ष 1980 में लोकदल की टिकट से अमरपुर विधान सभा का चुनाव लड़ चुके धीरेन्द्र यादव ने कहा कि पांच दशक पूर्व के वक्त जनता ही चुनाव लड़ती थी। उस समय सत्तु पीकर पैदल ही गांव-गांव लोगों के बीच जनसम्पर्क अभियान चलाते थे। जब कोई राष्ट्रीय नेता आते थे, तो उसके लिए टांगे की व्यवस्था की जाती थी। वे लोग भी जनता के बीच पैदल चलना ही पसंद करते थे। उस समय दलित, मजदूर, गरीब की आवाज बनने वाले ही नेता कहलाते थे। धीरेन्द्र यादव ने बताया कि आज भी उन्हें वह दिन याद है, जब कर्पुरी ठाकुर ने 1980 में लोकदल से अमरपुर विस क्षेत्र के लिए नामांकन पर्चा भरने के बाद चुनाव खर्च 4 हजार रूपए भेजा था। हमने उस राशि को यह कहकर लौटा दिया था कि यहां कही पैसा खर्च ही नहीं है। यह पैसा अन्य जगहों पर खर्च करने के लिए लौटा दिया था। हालांकि वे कांग्रेस के प्रत्याशी नीलमोहन सिंह से 1562 वोट के अंतर से हार गए थे। 
गुलाम भारत में अंग्रेजो से भी लड़े धीरेन्द्र यादव पर कभी नही आया उसके हाथ 

शंभूगंज प्रखंड के बरौथा गांव में किसान परिवार के घर वर्ष 1929 में जन्म लिए धीरेन्द्र यादव ने बताया कि वह आजादी के आंदाेलन में भी जुल्मी अंग्रेज़ों से लोहा लिये थे। उसके बाद भी आज तक सरकार से स्वतंत्रता सेनानी का पैसा नहीं लिया। उन्होंने बताया कि जनता की आवाज को कभी दबाने का काम नहीं किया। उन्होंने अमरपुर विस क्षेत्र की विकास के लिए जनता के साथ राय मशवरा कर कई बार पार्टी भी बदला। जहां वे सोशलिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया, संयुक्त समाज वादी पार्टी, लोकदल, दलित मजदूर किसान पार्टी, जनता पार्टी, जनता दल व समता पार्टी तक अपनी राजनीतिक जीवन में राजनीतिक करते रहे। वे कहते हैं कि भले ही पार्टी बदल लेते थे, लेकिन जनता की आवाज को कभी भी दबाने का काम नहीं करते थे। वहीं अब दलीय पार्टी में गरीबों की राजनीतिक करने का समय नहीं रहा। अब अपराधियों, दबंगों, बाहुबलियों के दिन आ गये हैं। 
चाहे लोकसभा का चुनाव हो या विस चुनाव हो सिर्फ पैसा का खेल सर्वोपरि रहता है। 

यही कारण है कि विकास योजना में कमीशन के खेल में गुणवत्ता तार-तार हो रही है। पांच दशक पूर्व के विकास कार्य की गुणवत्ता की बराबरी वर्तमान के विकास योजनाओं की गुणवत्ता नहीं कर पा रही है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में मुखिया के बेटा मुखिया, विधायक का बेटा विधायक, सरपंच का बेटा सरपंच बनने में लोकतंत्र की मर्यादा ही खत्म हो रही है। खासकर वंशवाद व परिवारवाद की राजनीतिक से कार्यकर्ता आहत होते हैं। उसका मनोबल पार्टी के प्रति गिरकर चूर हो जाता है। ऐसे में वह वंशवाद व परिवारवाद का राजनीतिक जीवन में शुरू से ही विरोध करते रहे हैं।


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